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भारत की मुद्रा कूटनीति-डॉलर के दबदबे को खुली चुनौती

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भारत की लोकल करेंसी ट्रेड की रणनीति: डॉलर की बादशाहत को सीधी टक्कर

मूल लेख: विनोद पोपट

हिन्दी रूपांतरण : मनभावी मनीश शेठ

भारत ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है जो न सिर्फ आर्थिक लिहाज़ से, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। भारत धीरे-धीरे अमेरिकी डॉलर की परंपरागत निर्भरता को छोड़ते हुए, लोकल करेंसी यानी स्थानीय मुद्रा में द्विपक्षीय व्यापार की तरफ बढ़ रहा है।

ऐसी ही एक बड़ी डील है — भारत और मॉरिशस के बीच – ट्रेड एग्रीमेंट — जिसमें दोनों देश अब भारतीय रुपये (INR) और मॉरिशियन रुपये (MUR) में कारोबार करेंगे, न कि डॉलर में। यह बदलाव सिर्फ सुविधा या आत्मगौरव की बात नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक चाल है, जो भविष्य में वैश्विक आर्थिक व्यवस्था और संतुलन को बदल सकती है।

भारत-मॉरिशस डील: एक केस स्टडी

2024 की शुरुआत में भारत और मॉरिशस ने एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट साइन किया, जिसके तहत अब दोनों देश अपनी-अपनी लोकल करेंसी में व्यापार और निवेश कर सकेंगे। अब इंडियन एक्सपोर्टर्स और मॉरिशियन इम्पोर्टर्स INR और MUR में सीधे लेन-देन कर सकते हैं — और इसमें डॉलर की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

ये समझौता सिर्फ व्यापार की भाषा नहीं बोलता, ये भारत और मॉरिशस के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्तों को भी एक नई आर्थिक दिशा देता है। और हां, ये मॉडल अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के बाकी देशों के लिए भी एक उदाहरण बना है और वे भी इस दिशामें कदम बढाने कि योजना बना रहे हैं।

RBI की पहल और भारत की बड़ी प्लानिंग

ये पूरा मामला RBI की 2022 में जारी गाइडलाइंस का हिस्सा है, जिसमें कहा गया था कि ऐसे देशों के साथ भारतीय रुपये में व्यापार किया जा सकता है जो डॉलर की कमी से जूझ रहे हैं या भारत के साथ गहरे व्यापारिक रिश्ते बनाना चाहते हैं।

श्रीलंका, रूस और UAE जैसे देश पहले से ही इसी तरह के सिस्टम को अपनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

लोकल करेंसी ट्रेड क्यों जरूरी है?

1. डॉलर की उठा-पटक से छुटकारा:
लोकल करेंसी में व्यापार करने से डॉलर और रुपये के बीच के भाव में रोज़ाना होने वाले उतार-चढ़ाव का असर कम होगा । इससे लेन-देन में स्थिरता आएगी और ‘ट्रांजैक्शन कॉस्ट’ भी कम होगा है।

2. आर्थिक आत्मनिर्भरता को मज़बूती:
डॉलर पर निर्भरता कम होगी तो भारत जैसे देश अपनी मॉनिटरी पॉलिसी पर ज्यादा कंट्रोल रख पाएंगे।

3. ग्लोबल साउथ की एकजुटता को बढ़ावा:
दक्षिणी गोलार्ध के विकासशील देश अब पश्चिमी देशों की बनाई फाइनेंशियल व्यवस्था पर निर्भर नहीं रहना चाहते। लोकल करेंसी का ट्रेड ज्यादा समान और निष्पक्ष सिस्टम बना सकता है।

डॉलर की बादशाहत पर असर

दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय व्यापार और रिज़र्व करंसी का किंग बना हुआ है। लेकिन अब भारत जैसे देशों की नई रणनीति डॉलर की इस बादशाहत को धीरे-धीरे चुनौती दे रही है। इसके नतीजे ये हो सकते हैं:

  • डॉलर की पकड़ कमजोर होगी:
    जैसे-जैसे और देश लोकल करेंसी में ट्रांजैक्शन करना शुरू करेंगे, डॉलर की मांग घटेगी और उसकी ग्लोबल पकड़ ढीली पड़ेगी।
  • अमेरिका का आर्थिक दबदबा घटेगा:
    अमेरिका अकसर अपने डॉलर डॉमिनेंस का इस्तेमाल करके दुनियाभर में पॉलिटिकल प्रेशर बनाता रहा है। अगर दुनिया डॉलर से दूर जाती है तो उसकी ये ताकत भी घटेगी।
  • मुद्राओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी:
    अब चाइनीज़ युआन और रूसी रूबल के साथ-साथ भारतीय रुपया भी एक ऑप्शन बन रहा है। इससे वैश्विक मुद्रा प्रणाली और ज्यादा विविध और संतुलित होगी।

भारत का लॉन्ग टर्म विज़न

भारत की ये स्ट्रैटेजी कोई इत्तेफाक नहीं है। ये लंबी सोच का हिस्सा है — जिसमें भारत रुपये को इंटरनेशनल ट्रेड की बड़ी मुद्रा बनते देखना चाहता है।

यह कदम भारत की बड़ी राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं के भी अनुकूल है: ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना, चीन को एक संतुलन देना और वैश्विक आर्थिक सिस्टम में अपनी अलग पहचान बनाना।

निष्कर्ष: भारत अब गेम चेंजर की भूमिका में

भारत और मॉरिशस की ये डील महज़ एक व्यापारिक समझौता नहीं है, ये उस बड़े बदलाव का संकेत है जो अब दुनिया की आर्थिक तस्वीर बदल सकता है।

डॉलर की एकाधिकार वाली दुनिया से हटकर अब एक नई व्यवस्था उभर रही है, जहां कई मुद्राएं होंगी, और शक्ति का बंटवारा ज़्यादा संतुलित होगा।

अगर भारत इसी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा, तो आने वाले वक्त में हम देख सकते हैं कि डॉलर की बादशाहत को टक्कर देने वाला अगला बड़ा खिलाड़ी सिर्फ चीन या रूस नहीं, बल्कि भारत होगा — जो अपनी अलग राह पर, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक सोच के साथ आगे बढ़ रहा है।

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