कड़वी मर्दानगी और ऑनलाइन जहर की सीधी, बेधड़क प्रस्तुति
न कट, न जंप — सब कुछ रीयल टाइम में।
सीरीज़ की शुरुआत: एक साधारण परिवार, एक असाधारण घटना
इंग्लैंड के एक शांत शहर में, एक रोज़ पुलिस स्टीफन के घर दस्तक देती है। उनका किशोर बेटा जेमी (ओवेन कूपर) गिरफ्तार होता है – उस पर एक 13 वर्षीय लड़की की चाकू से हत्या करने का आरोप है। सात वार किए गए थे।

मां मेंडा (क्रिस्टीन ट्रेमार्को) और पिता एडी (स्टीफन ग्राहम) स्तब्ध हैं।
बाप अपने बेटे से पूछता है –
“बेटा, सच बता, तूने नहीं किया ना ये? मुझे पता है, तूने नहीं किया… राइट?”
“नहीं पापा, मैंने नहीं किया…”
इस मासूमियत में छिपा वह दर्दनाक सच – जो न कहा जा सके, न सहा जा सके।
बाप-बेटे की आँखों से बहते आंसू – एक परिवार का ढहता विश्वास।
‘Adolescence’ सिर्फ एक क्राइम ड्रामा नहीं है — यह आज के समाज का आईना है।
नेटफ्लिक्स पर आई यह ब्रिटिश मिनी-सीरीज़ (4 एपिसोड) सिर्फ भारत नहीं, पूरी दुनिया के दर्शकों को हिला चुकी है। अप्रैल 2025 तक इसे 66 लाख से ज़्यादा दर्शकों ने देखा है – और इसकी चर्चा लगातार बढ़ रही है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भी इसे अपने परिवार के साथ देखा और कहा —
“मुश्किल लेकिन ज़रूरी।”
उनका सुझाव है कि इस सीरीज़ को स्कूलों में बच्चों को दिखाया जाना चाहिए ताकि उन्हें “टॉक्सिक मेनोस्फियर” — यानी पुरुषवादी और जहरीले ऑनलाइन कंटेंट के असर को समझाया जा सके।
सीरीज़ में क्या है ऐसा ख़ास?
13 साल का जेमी अपनी क्लासमेट कैटी (एमीलिया हॉलिडे) की हत्या करता है।
जांच के दौरान उसके इंस्टाग्राम मैसेज देखकर ऐसा लगता है कि दोनों दोस्त थे।
लेकिन जब एक किशोर जासूस (इंस्पेक्टर का बेटा) उन इमोजीज़ का विश्लेषण करता है, तब पता चलता है —
ये इमोजी दोस्ती के नहीं, बल्कि तंज और बुली करने के कोड हैं।
यानी आज की किशोर भाषा और सोच, बड़ों की समझ से बाहर होती जा रही है।
बच्चों की यह डिजिटल “गुफा” — जहां इमोजी के पीछे घृणा छुपी है, वहां हम क्या समझ पाएंगे?
एंड्रयू टेट और ऑनलाइन ज़हर
इस सीरीज़ में दिखाया गया है कि एंड्रयू टेट जैसे पुरुषवादी सोशल मीडिया ‘गुरु’ कैसे बच्चों के मन को दूषित करते हैं। उनके विचार धीरे-धीरे बच्चों को आक्रामक, हिंसक और स्त्रीविरोधी बना देते हैं।



टेक्निकल चमत्कार:
हर एपिसोड — एक ही शॉट में शूट किया गया।
कोई कट नहीं।
कैमरा चलता है — कलाकार बदलते हैं, लोकेशन बदलती है, भावनाएं बदलती हैं – पर सब कुछ लगातार, जिंदा, धड़कता हुआ।
हर दृश्य का मौन — इतना ज़ोरदार है कि वह चीखता है।
क्राइम, कोर्टरूम और क्लूज़:
पूरे शो में CCTV फुटेज, इंस्टा पोस्ट्स, वकील, पुलिस अधिकारी – सब एक ही दिशा में इशारा करते हैं।
फिर भी सच हर बार बदलता है।
क्या जेमी वाकई हत्यारा है?
यह सवाल दर्शक के मन में गूंजता रहता है।




किशोर मन और साइकोलॉजी:
तीसरे एपिसोड में जेमी की मानसिक स्थिति, उसका काउंसलिंग सेशन, और किशोर मन के द्वंद्व को जिस गहराई से दिखाया गया है – वो रुला देता है।
आखिरी एपिसोड — सबसे भावनात्मक विस्फोट है।
एडी के जन्मदिन पर जो होता है, वह दर्शाता है —
समाज अब किसी को दूसरा मौका नहीं देता।
यह सिर्फ मनोरंजन नहीं — एक आईना है:
बच्चों, माता-पिता, शिक्षकों और पूरे समाज को देखने की ज़रूरत है इसमें।
क्या हम तैयार हैं आज की पीढ़ी को समझने के लिए?
FirstPost की रिपोर्ट कहती है —
यूके में 80% किशोर एंड्रयू टेट जैसे कंटेंट देखते हैं। भारत में भी स्थिति कुछ अलग नहीं।
इसका नतीजा है —
बुलीइंग, डीपफेक पॉर्न, स्कूलों में लैंगिक हिंसा — सब बढ़ रहा है।
इसीलिए यह सीरीज़ आज के समय में बेहद ज़रूरी बन जाती है।
प्रभावी पक्ष:
✅ टेक्निकल उपलब्धि – एक शॉट में पूरा एपिसोड।
✅ कलाकारों का भावपूर्ण अभिनय –
ओवेन कूपर (जेमी) का मौन, उसकी आंखें – भीतर के तूफान को बखूबी दिखाती हैं।
पिता (स्टीफन ग्राहम) और मां (क्रिस्टिन ट्रेमार्को) — दिल तोड़ देने वाले यथार्थ को जीवंत करते हैं।
✅ कहानी की निरंतर बेचैनी –
हर दृश्य के साथ एक बेचैनी, एक तनाव — दर्शक को सोचने पर मजबूर करता है।
कुछ कमज़ोर पहलू:
❌ कथानक में गहराई की कमी –
शायद जानबूझकर न्यूट्रल नैरेटिव चुना गया, लेकिन कभी-कभी लगता है कि मानसिक सवालों को और गहराई से छूना चाहिए था।
❌ बहुत ज़्यादा कंट्रोल –
सारा अभिनय, संवाद और मूवमेंट अत्यधिक रिहर्स्ड और मशीनी लगते हैं। थोड़ी ‘गड़बड़ी’ भी कभी-कभी सजीवता लाती है – जो यहां गायब है।
❌ संवादों की पुनरावृत्ति –
पुलिस स्टेशन के सीन में कुछ सवाल कई बार दोहराए गए लगते हैं।

निष्कर्ष:
‘Adolescence’ एक टेक्नीकली शानदार और विचारोत्तेजक सीरीज़ है।
यदि आपको रीयल-टाइम ड्रामा, धीमे उभरते तनाव और तकनीकी सिनेमा की कद्र है – तो यह आपके लिए है।
यह सवाल कम पूछती है, लेकिन सोचने को बहुत कुछ देती है।
सिग्नेचर:
किरदारों की गहराई, निर्देशक की मीनिमलिस्ट शैली और उस सन्नाटे की गूंज — यही है ‘Adolescence’ की पहचान।