
“ज़िंदगी ना मिली मन मर्ज़ी की… फिर भी उधार की ज़िंदगी मत जियो”
शून्य पालनपुरी ने बिल्कुल ठीक कहा है:
“ज़िंदगी ना मिली मन मर्ज़ी की…”
फिर भी इसका ये मतलब नहीं कि हम उधार की ज़िंदगी जीते रहें।
अपनी ज़िंदगी जियो… अपनी शर्तों पर जियो।
हम अक्सर खुद ही अपनी ज़िंदगी में इतने उलझे रहते हैं—कभी अपने कर्मों की गुत्थियों में, कभी अचानक हुई घटनाओं के झटकों में, तो कभी रिश्तेदारों और दोस्तों के इमोशनल माहौल में फंसे हुए—कि हमें याद ही नहीं रहता कि हम अपनी ज़िंदगी कस्टमाइज़ भी कर सकते हैं।
उधार की ज़िंदगी मत जियो
ओशो ने क्या ही सुंदर बात कही है:
“उधार की ज़िंदगी मत जियो। अपनी असली ज़िंदगी जियो। नकाब उतारो, मौलिक बनो… तभी आज़ादी का असली स्वाद मिलेगा।”
लेकिन इसके ठीक उलट, हम डिफ़ॉल्ट मोड पर जीते जाते हैं। एक ऐसे चक्रव्यूह में फँसे रहते हैं, जहाँ घर-परिवार और रिश्तों की भावनात्मक बंदिशें हमें मरने नहीं देतीं…
और ज़िंदगी की तूफ़ानी समस्याएं हमें अपनी तरह जीने नहीं देतीं।
सिर्फ ‘कनेक्टेड’ हैं, साथ नहीं
आज सब एक-दूसरे से जुड़े हुए तो हैं, मगर साथ नहीं।
फेस-टू-फेस मिलना अब एक लग्ज़री बन चुका है।
किसी से मिलने की बात कहो, तो सामने वाला पूछेगा:
“एजेंडा क्या है?”
और अगर कहो कि बस ऐसे ही, एक चाय साथ में पीनी है…
तो जवाब में आएगा:
“इतनी दूर चाय के लिए ट्रैवल? भाई G-pay कर देता हूँ, पी लेना… हाहाहाहा… ☕😂”
अगर कभी संयोग से मुलाकात हो भी जाए, तो हम सब, कोई भी हो , तुरंत ही चेहरे पर ‘फेस’ पहन लेते हैं।
और उस ‘फेस’ के पीछे अपना ‘स्व’ खो बैठते हैं।
‘फेस पैक’ – मल्टीपैक ऑफ़र में उपलब्ध!
ये ‘फेस’ अब मल्टीपैक ऑफ़र्स में आते हैं –
ऑफिस के लिए अलग,
घर के लिए अलग, दोस्तों के लिए अलग,
रिश्तेदारों के लिए अलग,
WhatsApp ग्रुप के लिए एकदम अलग!
दैनिक दिनचर्या – मैकेनिकल लाइफ़
हर सुबह उठते हैं मैकेनिकल मोड में।
WhatsApp पर Good Morning से शुरू करके, रात को Netflix पर ताला लगाकर सो जाते हैं।
इमोशंस अब इमोजी और GIF में कैद हो चुके हैं।
हमारे ‘लाइफ़ ऐप’ में तो प्री-इंस्टॉल्ड Notifications, Calendar, वर्चुअल मीटिंग्स, ऑनलाइन डिलीवरी… सब कुछ है—
बस भावनाओं के लिए कोई फोल्डर ही नहीं बनाया गया!
क्योंकि उन्हें अपडेट करने का ऑप्शन कहीं है ही नहीं।
वीकेंड का फैमिली टाइम भी अब एक प्री-अप्रूव्ड कैलेंडर इवेंट बन गया है।
बाकी हफ़्ते भर हम बस ये गिनते रहते हैं कि:
कौन किसे फॉलो कर रहा है?
किसके कितने फॉलोअर्स हैं?
फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए?
कर्म और नियति – पर क्या प्रयास ज़रूरी नहीं?
हम सब कहते हैं कि “कर्म का फल सबको मिलता है” और “जो नियति में लिखा है वही होगा”।
पर हक़ीक़त ये भी है कि बिना पुरुषार्थ के प्रारब्ध भी साथ नहीं देता।
ज़िंदगी तो सबको मिलती है, पर ‘मन मर्ज़ी की’ क्यों नहीं?
हमें नियति को चुनौती देनी होगी…
क्योंकि हम ‘बाय डिफ़ॉल्ट’ ज़िंदगी जीने के आदी हो गए हैं।
ज़िंदगी तो सबको मिलती है…
पर मन मुताबिक सबको क्यों नहीं?
मिशन एक्सप्लोर: अपडेट योरसेल्फ!
हमने ‘ज़िंदगी को एक्सप्लोर’ करने का विकल्प कभी सिलेक्ट ही नहीं किया।
अपनी क्षमताओं को अपडेट करने का ऑप्शन कभी यूज़ ही नहीं किया।
हम सिर्फ दूसरों की कॉपी बने हैं—जो ट्रेंडिंग है वही फॉलो करते हैं।
कभी खुद को जीने की कोशिश ही नहीं की।
चलो, अब भी देर नहीं हुई है।
अपनी लाइफ़ ऐप को रीसेट करें।
प्री-इंस्टॉल्ड सिस्टम तो है ही…
अब उसे अपडेट करें,
और कस्टमाइज़ करें… अपनी जरूरत और अपनी शर्तों के अनुसार।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का संदेश:
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः”
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