
‘कर्म बनाम किस्मत‘ — जीवन के प्रवाह में हमारी भूमिका क्या है?
ताओ ने एक अद्भुत बात कही है:
“अपने कर्मों पर नजर रखो – वे कब आदत बन जाएँगे, पता नहीं चलेगा।
अपनी आदतों पर नजर रखो – वे कब स्वभाव बन जाएँगी, पता नहीं चलेगा।
और यही स्वभाव घड़ता है आपका चरित्र… और चरित्र घड़ता है आपका भाग्य!”
अब ज़रा ठहर कर सोचिए —
हम जिस भाग्य को बदलने की इतनी कोशिश करते हैं, उसका आधार क्या है?
उसका आधार है – कर्म.
और यही वो तत्व है, जिसे लेकर सबसे ज़्यादा भ्रम और उलझन है।
कर्म — आखिर है क्या?
पुराणों से लेकर पॉप कल्चर तक, कर्म सर्वव्यापी है।
किसी के लिए यह एक धार्मिक अवधारणा है, तो किसी के लिए महज़ टैटू पर लिखी एक स्टाइलिश लाइन।
लेकिन सच्चाई बेहद सरल है:
“जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।”
या फिर बॉलीवुड शैली में:
“वो सुबह कभी तो आएगी!”
दिक्कत तब शुरू होती है जब लोग सेब के पेड़ बोते हैं और आम की उम्मीद करते हैं।
यहीं से भ्रम जन्म लेता है…
कर्म को लेकर उठते हैं कुछ बेहद बुनियादी सवाल:
- क्या कर्म केवल एक क्रिया है या उसके परिणाम भी हमारे कर्म का हिस्सा हैं?
- क्या कर्म सचेत प्रयास है या अनजाने में बहता हुआ एक स्वचालित प्रवाह?
- क्या कर्म सिर्फ व्यक्तिगत होता है या सामूहिक भी?
और मज़ेदार बात ये है कि इन सवालों के उत्तर खोजने की प्रक्रिया भी एक “कर्म” है!
कर्म क्या है? जीवन क्या है? दोनों एक निरंतर प्रवाह हैं।
यह प्रवाह चलता ही रहता है –
आप चाहो या ना चाहो, हँसते हुए साथ बहो या रोते हुए किनारा करो –
फिर भी यह बहता ही रहेगा।
कुछ कर्म हम जानबूझकर करते हैं,
कुछ अपने-आप हो जाते हैं – हमें पता भी नहीं चलता।
धीरे-धीरे ये छोटे-छोटे काम आदतों का रूप ले लेते हैं।
इन आदतों से बनते हैं अनुभव।
सही संगत और अनुभव किसी को संवेदनशील बनाते हैं।
गलत संगत के अनुभव व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देते हैं।
इसी तरह…
बार-बार दोहराए गए कर्म → आदत
आदत → मानसिकता
मानसिकता → स्वभाव
स्वभाव → पहचान
पहचान → भाग्य
यानि आख़िरकार, आपका भाग्य आपकी आदतों से बनता है।
फिर से वही मूल प्रश्न:
कर्म क्या है?
कर्म एक सतत प्रवाह है –
हमारे इरादों से, या कभी-कभी उनके बिना भी,
कभी मुस्कान के साथ, कभी आँसुओं में डूबे हुए –
लेकिन वह चलता रहता है।
कुछ कर्म हमारी मर्ज़ी से होते हैं,
कुछ बस हो जाते हैं —
जैसे सुबह उठते ही मोबाइल चेक करना… या बिना सोचे किसी पर गुस्सा हो जाना।
और एक कड़वी सच्चाई भी है:
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी अच्छे परिणाम की कोई गारंटी नहीं है।
कोई भी इंसान बुरा नतीजा पाने के इरादे से कर्म नहीं करता,
फिर भी ऐसा होता है —
जब अपेक्षा नहीं होती, तभी कुछ अजीब परिणाम सामने आते हैं।
तो क्या हमें कर्म करना चाहिए या नहीं?
उत्तर है: “कर्म न करना” भी एक तरह का कर्म है।
प्रवाह को रोका नहीं जा सकता,
लेकिन उसमें डूबना या तैरना – ये हमारा चुनाव है।
फल हमारे हाथ में नहीं,
पर कर्म तो है।
आख़िर में यह सब निर्भर करता है इस पर कि:
- आप जीवन को सज़ा और इनाम का खेल मानते हैं या अनुभव और आत्मविकास की यात्रा?
- आप कौन-सा चश्मा पहन कर इस जीवन को देख रहे हैं?
जो रंग आप चश्मे में देखेंगे, वही रंग जीवन में नज़र आएगा।
आपकी आदतें, आपकी मानसिकता और वही आपकी कर्म-प्रवृत्ति तय करती हैं कि आप कैसे कर्म करते हैं, और अंततः किस तरह का भाग्य गढ़ते हैं।
हस्ताक्षर (Signature)
कर्मों का लेखा-जोखा संतुलित रखने के लिए ज़रूरी है कि ज़रूरत (NEED) और लोभ (GREED) के बीच संतुलन बना रहे।
क्या आप अपनी आदतों से अपना भाग्य गढ़ रहे हैं?
या किसी अनजाने प्रवाह में बस यूँ ही बहते जा रहे हैं?
सवाल आपका है।
पूछना भी खुद से है।
और जवाब भी… आपको ही देना है।