
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||
नवरात्रि की पावन तिथि पर पहले दिन माता दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। उनके नाम में ही उनका स्वरूप प्रकट होता है – “शैल” का अर्थ पर्वत और “पुत्री” का अर्थ पुत्री। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। माता पार्वती, सती और हेमावती के नाम से भी पूजनीय हैं। नवरात्रि में नौ दुर्गाओं में प्रथम स्थान रखने वाली यह देवी साधकों के लिए आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक हैं।
स्वरूप और लक्षण
मा शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत मनोहारी और तेजस्वी है। माता श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं। माता का दाहिना हाथ त्रिशूल धारण किए हुए है, जो तमोगुण, रजोगुण और सत्त्वगुण पर विजय का प्रतीक है। बायाँ हाथ कमल का पुष्प लिए हुए है, जो पवित्रता और सुंदरता का प्रतीक है। उनका मुख चंद्रमा की तरह शांत और तेजस्वी है। यह स्वरूप साधक को स्थिरता, निर्भयता और पवित्रता की प्रेरणा देता है। त्रिशूल तपस्या और संकल्प शक्ति का प्रतीक है, जबकि कमल भक्ति की शुद्ध भावनाओं को दर्शाता है।
मा शैलपुत्री का प्रिय रंग लाल है। लाल रंग शक्ति, उत्साह, प्रेम और बहादुरी का प्रतीक है। इस दिन भक्त लाल वस्त्र पहनते हैं और माता को लाल फूल अर्पित करते हैं। लाल रंग मूलाधार चक्र का प्रतीक भी है, जो आध्यात्मिक साधना के प्रारंभिक चरण को दर्शाता है।
महत्व और शक्ति
पुराणों के अनुसार मा शैलपुत्री ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्ति का प्रारंभिक स्वरूप हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, उनके पूर्व जन्म में माता सती थीं, जो दक्ष प्रजापति की कन्या थीं। जब दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया, तब सती ने योगाग्नि में स्वयं का त्याग किया और यज्ञकुंड में आत्मविसर्जन किया। इसके बाद वे हिमालय की पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लेकर शैलपुत्री के रूप में प्रकट हुईं। उन्हें स्थिरता, धैर्य और मनोबल की देवी माना जाता है। भक्ति की प्रारंभिक सीढ़ियों पर मन को एकाग्र करने के लिए उनकी पूजा अनिवार्य मानी जाती है।
पूजा की विधि
नवरात्रि के पहले दिन मा शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सुबह स्नान कर कलश स्थापना की जाती है, जिसे नौ दुर्गाओं के आगमन का प्रतीक माना जाता है। देवी को लाल या सफेद फूल अर्पित किए जाते हैं। लाल चंदन, कुमकुम, अक्षत, दूध, घी और मध से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद त्रिशूल और कमल का स्मरण करते हुए मा शैलपुत्री का ध्यान किया जाता है। उन्हें शंख, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर आरती की जाती है। विशेष रूप से दूध का भोग देने से जीवन में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
प्रार्थना:
“या देवी सर्वभूतेषु मा शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
भक्ति का अर्थ
मा शैलपुत्री की भक्ति केवल धार्मिक विधि नहीं, बल्कि मन को स्थिर करने का एक साधन है। भक्त उन्हें माता समझकर सम्पूर्ण समर्पण करता है। उनकी आराधना से साधक के मन में पवित्रता आती है, परिवार में सुख-शांति बढ़ती है और चिंता से मुक्ति मिलती है। साधकों में आध्यात्मिक ऊर्जा का उद्भव होता है।
फलश्रुति
पुराणों के अनुसार, जो भक्त श्रद्धा और भक्ति पूर्वक मा शैलपुत्री की पूजा करते हैं, उन्हें जीवन में अटूट ऊर्जा, धैर्य और स्थिरता प्राप्त होती है। सभी पापों का नाश होता है और साधक धीरे-धीरे उच्च आध्यात्मिक यात्रा में अग्रसर होता है। स्वास्थ्य में सुधार होता है, परिवार में सुख-शांति आती है और मन में एकाग्रता प्रबल होती है।
आध्यात्मिक लाभ:
- मूलाधार चक्र की जागृति
- मन में स्थिरता और शांति
- नकारात्मक विचारों का नाश
- आध्यात्मिक साधना में प्रगति
भौतिक लाभ:
- स्वास्थ्य और बल की प्राप्ति
- पारिवारिक सुख और समृद्धि
- विघ्न और बाधाओं का निवारण
- जीवन में स्थिरता और सफलता
विशेष कृपा:
- अविवाहित कन्याओं को उचित जीवनसाथी की प्राप्ति
- गर्भवती स्त्रियों को सुरक्षा और स्वस्थ संतान
- व्यवसाय में वृद्धि और नए कार्यों में सफलता
व्रत और उपवास:
पहले दिन कुछ भक्त निर्जला उपवास रखते हैं, जबकि अन्य फलाहार करते हैं। संध्या में आरती के पश्चात प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन और सात्विक आहार का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मा शैलपुत्री नौ दुर्गाओं की प्रथम देवी हैं, जो आरंभ, निर्भयता और शुद्ध भक्ति का प्रतीक हैं। नवरात्रि की शुरुआत उनकी आराधना से होती है क्योंकि यह आध्यात्मिक उन्नति का पहला कदम है। शुद्ध भाव और निर्मल भक्ति से उनकी पूजा करने पर जीवन में सुख, शांति और अडिग मनोबल प्राप्त होता है।
नवरात्रि में नवदुर्गा के नौ स्वरूपों पर प्रस्तुत सभी लेख केवल अलग–अलग स्थानों से संकलित जानकारी का संग्रह मात्र हैं।
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