Memoryloss Syndrom
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स्मृतिलोप सिंड्रोम – सेलेक्टिवली Forgetful और नजरअंदाज़ करने की classy शैली।

Memoryloss Syndrom

जब वो सामने होकर भी अनदेखा कर दे…

ऐसा हो सकता है कि, कोई व्यक्ति को सामने देखकर मन में खुशी हो , विचार आए कि, “चलो, मिल लेते हैं।” आप उसकी ओर एक क़दम बढ़ाते हैं, लेकिन अचानक, आश्चर्य के बीच, वही व्यक्ति आपको देखकर नजरें फेर लेता है। चेहरा दूसरी ओर मोड़ लेता है। वह किसी और के साथ खड़ा होकर यूं ही बेतुकी बातों में उलझ जाता है और फिर बिना किसी खास वजह गले लगाता है, मुसकुराता है, – जैसे आप वहाँ हैं ही नहीं। आपका अस्तित्व जैसे किसी शून्य में ढकेल दिया गया हो।

कभी जिसके साथ आपका रिश्ता रहा हो, जिसे आपने कभी ‘अपना मित्र’ माना हो – और उसने भी उस अपनत्व को नकारा न हो .... आज वही व्यक्ति आपको अनदेखा कर दे – तो यह झटका लगने जैसा अनुभव स्वाभाविक है। यह एक ऐसी घटना है जो असहनीय होती है, फिर भी उस पल कुछ बोला नहीं जाता, कोई प्रतिक्रिया नहीं दी जाती।

मन सवाल करता है – “”क्या यह वही इंसान है जिसे मैंने कभी अपना मित्र माना था?” उस क्षण जब उपेक्षा का अनुभव होता है – खासकर तब जब आप मिलने के लिए उत्साहित थे – आपके मन में न तो कोई खोट थी, न कोई मेल था न तो कोई स्वार्थ। न ही उस व्यक्ति के लिए कोई शिकायत या कुछ गलत करने का पछतावा।
तो फिर ऐसा क्यों?
जहाँ कोई झगड़ा न हुआ हो, न कोई मनमुटाव, फिर भी ऐसा बर्ताव हो, तो वह और भी ज्यादा चुभता है।

ऐसी स्थिति में मन अपने आप फ्लैशबैक में चला जाता है। पहला सवाल यही होता है – कहाँ से शुरू हुआ यह गलतफहमी का सिलसिला? क्या कोई बात कह दी गई थी जो उसे पसंद न आई हो? क्या कहीं उसका अहं आहत हुआ हो? या फिर उसने खुद ही निर्णय ले लिया हो कि अब दूरी बनाए रखनी है?

फिर शुरू होती है – मन को समझाने की कवायद। अपने आप से सवाल, और खुद ही उत्तर ढूँढने की कोशिश।
लेकिन एक सवाल लगातार कचोटता रहता है: “आख़िर ऐसा क्यों हुआ?”
शायद वो इंसान सच बोलने का साहस नहीं जुटा पाया होगा, इसलिए उसने आपके अस्तित्व से ही बचना सीख लिया।
आजकल “Ignore with Grace” समाज का सुसंस्कृत ट्रेंड बन गया है।

इमोशनल और इंटेंशनल डिस्टेंस

यह व्यवहार एक तरह की मौन अस्वीकृति है। हमारे आधुनिक संबंधों में अक्सर स्पष्ट संवाद (“Clarity through Conversation”) की बजाय चुपचाप दूरी बनाना (“Silent Cut-off”) ज्यादा देखा जाता है। क्योंकि लोग टकराव से डरते हैं, या अपनी छवि खराब होने की चिंता करते हैं। इसलिए वे चुपचाप शारीरिक दूरी बनाना पसंद करते हैं।

लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है – क्या इस तरह तोड़े गए रिश्ते, यह उपेक्षा वाकई में समाधान देती है?या फिर हर मुलाक़ात पर एक अंतहीन असहजता पैदा करती है?

व्यावहारिक आध्यात्मिकता की शुरुआत

यह समझना जरूरी है – सिर्फ इग्नोर कर देने से किसी की इज़्ज़त कम नहीं होती, लेकिन अपना मन ज़रूर कमजोर पड़ जाता है।
रिश्ते – ये कर्म होते हैं, व्यवहार की एक धारा होती है –
अगर उसमें रुकावट लाएँगे, तो भीतर उदासी और खालीपन घर कर लेता है।

और आमतौर पर उस समय आपके मन मैं क्या आता है?

  • TIT for TAT – जैसे को तैसा यानि वैसा ही बर्ताव लौटाकर देना। आप भी चुप रह जाएँ, और “अदृश्य यात्रा” शुरू कर दें।
  • Forgive, Forget & Move on –हम क्यों नकारात्मक कर्म बाँधें?

आंतरिक निर्मलता और मौन भी अपना संदेश पहुँचा सकते हैं।

क्योंकि जब आप खुद के सामने खड़े होते हैं और आपका दिल आपको गवाही देता है कि आपने किसी के साथ गलत नहीं किया – “यही आत्मिक स्पष्टता आपके व्यक्तित्व को ऊँचाई पर पहुँचाती है।”

हमारी अच्छाई इसमें है कि अब हम रिश्तों की मर्यादा खुद तय करें – लेकिन इसके लिए दिल में कड़वाहट लाने की ज़रूरत नहीं। बल्कि दृढ़ निश्चय करें कि अब किसी और की वजह से हम दुखी नहीं होंगे, न ही दुख में डूबे रहेंगे। और अपनी संवेदनशीलता, अपनी असली पहचान को खोने नहीं देंगे।

हर अंत अपने साथ एक नई शुरुआत लेकर आता है।

अगर यह वाकई एक अकल्पनीय अंत है, तो संभव है कि यही हमें और अधिक सजग, आत्मविश्वासी बनाए –और ऐसे गहरे संबंधों की ओर ले जाए जहाँ दोनों पक्ष एक-दूसरे के अस्तित्व का सम्मान करें।

सिग्नेचर

आजकल “Selective Forgetting Syndrome” – यानि “याददाश्त का स्वार्थी चयन” –उपेक्षा की ‘Classy’ शैली बन गई है। लेकिन सच्चाई ये है: नफरत में भावनाएं जीवित होती है। लेकिन उपेक्षामें भावनाओंका कब्रस्तान होता हैं।

स्मृतिलोप सिंड्रोम – सेलेक्टिवली भूल जाने की अनोखी कला और नजरअंदाज़ करने की classy शैली।

अगर आप ऐसी कोई स्थिति में फंस जाते है, या आपको ऐसा अनुभव होता है तो, आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी ? manbhavee@gmail.com पर हमें जरुर लिखे.

अगर आपको इस ब्लॉग साइट की सामग्री रोचक लगी हो, तो कृपया हमें manbhavee@gmail.com पर अपना फीडबैक ज़रूर भेजें और www.maujvani.com को सब्सक्राइब करें।

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VINODKUMAR SHAH
VINODKUMAR SHAH
9 days ago

એક સાચી સંવેદનાની સાવ સાચી વેદના.

Neeta Reshamiya
6 days ago

Its a bitter truth of current times. Mindsets have changed drastically. Behaviours are totally unpredictable. Though you know the person , can’t say anything about how he may treat you. Accept and move on…best mantra to keep the self happy.