
मंत्र जाप : : “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”
ध्यान मंत्र : “दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥”
नवरात्री का दूसरा दिन माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना के लिए समर्पित है। “ब्रह्मचारिणी” शब्द का अर्थ है – वह देवी जो ब्रह्म अर्थात् तप और संयम का आचरण करती हैं। वे साधना, त्याग, आत्मसंयम, धैर्य और मोक्ष की दात्री हैं। इस दिन साधक अपने भीतर की ऊर्जा को जागृत करने के लिए ध्यान और जप का विशेष महत्व मानते हैं, क्योंकि माँ ब्रह्मचारिणी को स्वाधिष्ठान चक्र की अधिष्ठात्री माना गया है।
स्वरूप और लक्षण
माँ ब्रह्मचारिणी का रूप अत्यंत शांत और पवित्र है। वे द्विभुजा स्वरूप में विराजमान रहती हैं। दाहिने हाथ में रुद्राक्ष की जपमाला और बाएँ हाथ में कमंडलु धारण किए हुए हैं। उनके मुखमंडल पर साधना और करुणा की अनूठी आभा है। वे नंगे पाँव चलती हैं, जो त्याग और तपस्या का प्रतीक है। इस रूप से साधकों को आत्मविश्वास, धैर्य और एकाग्रता का संदेश मिलता है।
रंग और प्रतीकात्मक महत्व
माँ ब्रह्मचारिणी का प्रिय रंग है सफेद। उनका वेश, उनके आभूषण और उनके पूजन में प्रयुक्त वस्त्र एवं पुष्प – सब श्वेत रंग में समर्पित होते हैं। सफेद रंग पवित्रता, सच्चाई, शांति और आत्मज्ञान का प्रतीक है। इस दिन भक्त भी प्रायः सफेद वस्त्र धारण कर माँ को प्रसन्न करते हैं।
पौराणिक महिमा
पुराणों के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती ने नारद जी के निर्देश पर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। कभी वे केवल फलाहार पर रही, तो कभी कई वर्षों तक निर्जल उपवास किया। इस तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और अंततः वे भगवान शंकर की अर्धांगिनी बनीं। अतः माँ ब्रह्मचारिणी को तपस्या और अदम्य संकल्प की देवी माना जाता है।
इस दिन ऐसी कुमारी कन्याओं का पूजन करने की परंपरा है जिनका विवाह अभी तक नहीं हुआ है। भक्त उन्हें अपने घर आमंत्रित करते हैं, उनके चरण धोकर उनका पूजन करते हैं और आदरपूर्वक भोजन कराते हैं। भोजन के उपरांत उन्हें वस्त्र, बर्तन अथवा अन्य उपयोगी सामग्री और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। मान्यता है कि इस विधि से माँ ब्रह्मचारिणी अति प्रसन्न होती हैं और साधक को अपार पुण्य तथा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
पूजन विधि
भोर में स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण कर स्वच्छ स्थान पर पूजन करें।
- सबसे पहले भगवान गणेश का स्मरण कर विघ्न विनाशक की प्रार्थना करें।
- तत्पश्चात् माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर उनका ध्यान करें।
- श्वेत पुष्प, चंदन, अक्षत अर्पित करें। विशेषतः चमेली और मोगरा माँ को अति प्रिय हैं।
- खीर, मिश्री, पंचामृत, ताजे फल और सादा प्रसाद अर्पण करें।
- रुद्राक्ष की माला से “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः” मंत्र का जाप करने से मन स्थिर और शांत होता है।
स्तुति मंत्र :
या देवी सर्वभूतेषु मा ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
प्रार्थना:
“तपश्चर्या परम तपो कृत्वा लोकहिताय च।
उस ब्रह्मचारिणी माँ की हम शरण लें॥”
भक्ति और फलश्रुति
माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक के जीवन में अडिग संकल्प शक्ति का संचार होता है। उनके पूजन से—
- आध्यात्मिक लाभ: स्वाधिष्ठान चक्र की शुद्धि, आत्मसंयम, वैराग्य और मोक्ष की प्राप्ति।
- शैक्षिक लाभ: विद्यार्थियों को एकाग्रता, स्मरणशक्ति और सफलता।
- सामाजिक लाभ: परिवार में सौहार्द, समाज में प्रतिष्ठा और दुर्व्यसनों से मुक्ति।
- व्यक्तिगत लाभ: आत्मविश्वास, धैर्य और निर्णायक क्षमता की वृद्धि।
नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन विशेष फलदायी माना गया है। इस व्रत से भक्ति का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और साधक के जीवन में दिव्यता का संचार होता है।
अंत में, माँ ब्रह्मचारिणी का स्मरण हमें यह सिखाता है कि जीवन की कठिनाइयों के सामने भी संकल्प और साधना से सफलता अवश्य मिलती है।
जय माँ ब्रह्मचारिणी!
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