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स्मार्टनेस का मुखौटा – शुगर कोटेड तंज़, शब्दों के स्नाइपर

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कभी-कभी कुछ दोस्तों या परिचितों से व्यक्तिगत बातचीत के दौरान एक अजीब समानता नज़र आती है — जिन परिस्थितियों की चर्चा होती है, हम सब कभी न कभी ऐसी परिस्थितियों से जरूर गुजरे होंगे। कभी हमने ऐसा व्यवहार किया होगा, ऐसी परिस्थितियों को क्रिएट कि होंगी या कभी ऐसी परिस्थितियों में किसी और के ऐसे बर्ताव का शिकार बने होंगे।

चाहे अनुभव भले ही अलग हों, लेकिन भावनाएँ और चोटें लगभग एक-सी होती हैं।

इन हालातों में हर बार कोई एक ही दोषी हो, ज़रूरी नहीं। ये सब अनजाने में भी हुआ होता है। मगर गौर से देखिए तो ये व्यवहार अक्सर “स्मार्ट दिखने की कोशिश” का हिस्सा होता है। इससे पहले “स्मृतिलोप सिंड्रोम” पर एक लेख में भी ऐसी ही एक पीड़ा का जिक्र हुआ था।

स्मार्टनेस का भ्रम

खुद को बहुत  स्मार्ट मानने वालों को अपने भ्रम में जीने का अधिकार है, लेकिन जब वे जब दूसरों को अंडरएस्टिमेट करने लगते हैं, तभी असली दिक्कत शुरू होती है।

ये लोग इतने मैनीपुलेटिव होते हैं कि इनकी हर बात ‘सुगर कोटेड’- मीठे लहजे में लिपटी होती है। इनकी हरकतों का असर तब समझ आता है जब नुकसान – डेमेज हो चुका होता है।

फिलिंग ऑफ़ बीइंग चीटेड

ऐसी घटनाएँ, जिनमें “चीटेड फील” होता है, जरूरी नहीं कि ऐसी घटनाएँ या ऐसा व्यवहार, किसी प्री-प्लान्ड मिशन का हिस्सा हों, कई बार ये ‘अच्छी सलाह’, ‘झूठी सहानुभूति’ या ‘पैसिव प्रशंसा’ के लिबास में लिपटे होते हैं।

“स्वीट टॉकर्स” की दुनिया

ऐसे “स्वीट टॉकर्स” कि जिनकी बातें सुनते-सुनते आपको डायबिटीज हो जाए! मगर असली खेल ये है कि ऐसी मीठी-मीठी बातों के बीच, वे ऐसा कुछ कह जाते हैं जो धीरे-धीरे आत्मविश्वास की हवा निकाल देता है। आत्मबल पंचर हो जाता है।

शब्द बम – “वर्बल ग्रेनेड्स

असल में ये शब्द बम होते हैं — “वर्बल ग्रेनेड्स”, जो बहुत धीमी गति से असर करते हैं।

  • “तुम अभी भी वही कर रहे हो?” या
  • “वाह! मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी!”

पहली नजर में लगता है कि ये सामान्य प्रतिक्रिया है, लेकिन सच में ये भावनात्मक आघात होते हैं। एक “गिफ्ट व्रैप” में लपेटी हुई चोट। इन्हें सुनते ही भीतर कुछ दरकने लगता है।

“क्या आप भी, इस काम में एक्सपर्ट हैं?” “क्या आप भी अपने आपको, इस काम में एक्सपर्ट मानते हो?”
— इसमें बर्फ की ठंडक भी है और शक की आग भी। मतलब साफ़ — अपनी लेन में रहो, वो भी धीमी लेन में!

एक क्लासिक “कॉन्फिडेंस-किलर” संवाद

“सफलता के लिए बधाई, लेकिन इसमें किसी ने मदद की होगी, है न?”

— यानी आपकी मेहनत से ज़्यादा क्रेडिट किसी और को! आपकी काबिलियत पर एक परोक्ष तमाचा — एक मीठी सी प्रशंसा में लिपटा कमेंट जो आपकी सफलता को ही छोटा कर दे।

मिठास में लिपटी चोट: एक सामाजिक वायरस

इन शुगर कोटेड हमलों का दायरा सिर्फ व्यक्तिगत नहीं होता। ये दोस्ती, परिवार और ऑफिस — हर जगह मौजूद होते हैं। और सबसे मुश्किल बात? ये लोग हमारे जैसे ही लगते हैं — कोई दानव रूप नहीं, कोई उग्र स्वर नहीं। बस शांत मुस्कान, सधे शब्द और रणनीतिक निशाने।

“तुम आजकल बहुत भूलने लगे हो… शायद डिमेंशिया?”

— सुनने में चिंता जैसी बात, लेकिन बार-बार कही जाए तो आप रात 3 बजे गूगल पर यही सर्च कर रहे होते हैं!

नयी शुरुआत? वाह! उसने भी यही किया था…”

— जैसे आपकी प्रेरणा नक़ल हो गई हो, और आपकी पहचान खत्म!

“तुमने बहुत सुधार किया है!”

— यानी पहले तुम बहुत ख़राब थे!

“भावनात्मक स्नाइपर्स”

ये “भावनात्मक स्नाइपर्स” आपके आसपास ही हैं

ये वे रिश्तेदार या दोस्त होते हैं जो कभी भी दिल से ताली नहीं बजाते। तारीफ करते हैं लेकिन उसमें एक एक्सपायरी डेट होती है। हर बार कुछ न कुछ ऐसा छोड़ जाते हैं जिससे आप अपने ही फैसलों पर शक करने लगें। ये लोग एक ही चोट में दो हिस्से नहीं करते, लेकिन धीरे-धीरे शंका के बीज बोते हैं, पूरी ईमानदारी से उसका पोषण करते हैं — ताकि वो पेड़ बने और आपको भीतर से हिला दे, आपकी बुनियाद ही हिला दे। आपके आत्मबल को पंक्चर कर दे!

लेकिन असली ताकत आपके पास है — इनको पहचानना। जिस दिन आपने इनका असली चेहरा देख लिया, उसी दिन से इनकी शक्ति खत्म हो जाती है।

✅ तो अब क्या करें?

अपनी काबिलियत पर भरोसा रखें। सबकी सुनें, पर करें वही जो आपके दिल को सही लगे। कभी भी उनके बनाए ढाँचों में खुद को फिट करने की कोशिश न करें। मीठी बातें करने वालों के पीछे छिपे इरादों को पहचानें। और सबसे जरूरी — अपनी मानसिक स्पेस में किसी को ‘फ्री रेंट’ पर न रहने दें।

✍🏻 सिग्नेचर लाइन:

समजदारी से बड़ी ताकत है सजगता। जब आप समझ जाते हैं कि कोई आपको क्या दिखा रहा है और क्या छुपा रहा है — वही क्षण है जब आप “आत्मविश्वास” से भरे होते हो

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