
नवरात्रि के तृतीय दिन आदिशक्ति के तीसरे स्वरूप मा चन्द्रघंटा की पूजा होती है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंंटी की झलक और दिव्य आभा के कारण उन्हें “मा चन्द्रघंटा” कहा जाता है। उनका स्वरूप सौम्य होते हुए भी अद्भुत वीरता और उग्र शक्ति का प्रतीक है।
मा चन्द्रघंटा शौर्य, पराक्रम और निर्भयता की देवी हैं। वे मणिपुर चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं और अपने भक्तों को पीड़ा और संकट से मुक्ति दिलाती हैं। भक्ति और करुणा से परिपूर्ण होकर वे सदैव सजग रहती हैं और दुष्टों के विनाश के लिए तत्पर।
स्वरूप और प्रतीक
माता का रूप अति तेजस्वी है। वे दस भुजाओं वाली हैं और सिंह पर विराजमान हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमल, धनुष-बाण और कमंडलु सुशोभित हैं। एक हाथ वरदमुद्रा में और एक हाथ अभयमुद्रा में है, जो भक्तों को निर्भयता और आशीर्वाद प्रदान करता है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र की घंंटी जगमगाती है। उनका प्रिय रंग पीला है, जो ज्ञान, उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है।
महात्म्य और कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान शिव बारात लेकर आये, उनका रूप भयानक और विचित्र था। इसे देखकर लोग भयभीत हो गए। उस समय मा पार्वती ने अर्धचंद्राकार घंंटी धारण कर चन्द्रघंटा स्वरूप लिया। उनके दिव्य रूप से भगवान शिव का उग्र रूप शांत हुआ और विवाह संस्कार संपन्न हुआ।
इस प्रकार वे शांति और पराक्रम के अद्वितीय संगम के रूप में प्रकट हुईं।
पूजन विधि
- प्रातः स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।
- पूजागृह को पीले पुष्पों से सजाएँ।
- माता की मूर्ति या चित्र पूर्व दिशा में स्थापित करें।
- पीले पुष्प, हल्दी, केसर और पीले मिष्ठान्न अर्पित करें।
- विशेष भोग: पीले लड्डू, केसर खीर, बेसन का हलवा।
- पूजन के समय “ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः” मंत्र का जप करें।
ध्यान मंत्र
“पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥”
स्तुति मंत्र
“या देवी सर्वभूतेषु मा चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
लाभ और फळश्रुति
- आध्यात्मिक: आत्मबल, आत्मविश्वास और मणिपुर चक्र की शुद्धि।
- मानसिक: भय और चिंता का नाश, साहस और मानसिक शांति।
- शारीरिक: पाचन और ऊर्जा वृद्धि, रोग प्रतिरोधक शक्ति में सुधार।
- सामाजिक: शत्रुओं पर विजय, परिवार में सुख-शांति और कार्यक्षेत्र में सफलता।
मा चन्द्रघंटा की उपासना से जीवन में शौर्य और शांति दोनों का संगम मिलता है।
जय माता दी!
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